भोजली 2024 में कब है 20 या 21 अगस्त को

भोजली 2024 में कब है 20 या 21 अगस्त को
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भोजली 2024: भोजली एक प्रमुख भारतीय पर्व है, जिसे विशेषकर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस पर्व का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, जो समाज में एकता और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का संदेश देता है। भोजली का उत्सव मुख्यतः श्रावण मास में आता है, जो कि हिंदू पंचांग के अनुसार वर्षा ऋतु का समय होता है।

भोजली पर्व का ऐतिहासिक महत्व

भोजली पर्व का आरंभ कृषि समाज में हुआ था। यह पर्व कृषि संस्कृति का प्रतीक है, जहां किसान अपनी फसलों की अच्छी पैदावार और प्रकृति की कृपा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। भोजली का पर्व हमारे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति आदरभाव को भी दर्शाता है। प्राचीन काल में, भोजली का आयोजन ग्राम समुदायों के बीच एक महत्वपूर्ण सामाजिक गतिविधि के रूप में किया जाता था, जिससे ग्रामीणों के बीच सहयोग और सद्भाव बढ़ता था।

भोजली की विधि और पूजा का महत्व

भोजली की पूजा एक विशेष विधि से की जाती है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन, महिलाएं और बालिकाएं मिलकर मिट्टी के पात्र में जौ और गेहूं के बीज बोती हैं। इस पात्र को भोजली कहा जाता है। इन बीजों को प्रतिदिन पानी दिया जाता है और इनके अंकुर निकलने पर उन्हें देवी भोजली के रूप में पूजा जाता है। भोजली की पूजा का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए देवी से आशीर्वाद प्राप्त करना होता है।

भोजली गीत और सामूहिकता

भोजली पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत इस पर्व की विशिष्टता को बढ़ाते हैं। ये गीत प्राचीन समय से ही चले आ रहे हैं और उनमें ग्रामीण जीवन की सादगी और धार्मिक आस्था का सुंदर चित्रण मिलता है। भोजली के गीत मुख्यतः महिलाएं सामूहिक रूप से गाती हैं, जिससे समाज में एकता और भाईचारे की भावना का विकास होता है। गीतों में देवी की महिमा का बखान और उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।

भोजली का समापन और विसर्जन

भोजली पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है। इस दिन, महिलाएं भोजली के पौधे को जलाशय में विसर्जित करती हैं। विसर्जन के समय महिलाएं गीत गाते हुए जलाशय की ओर जाती हैं और भोजली को प्रवाहित करती हैं। यह प्रक्रिया पर्यावरण के प्रति आदर और जल संरक्षण की एक पुरानी परंपरा को बनाए रखने का संदेश देती है। भोजली के विसर्जन के बाद महिलाएं एक-दूसरे को भोजली का प्रसाद बांटती हैं, जो भाईचारे और सद्भाव का प्रतीक होता है।

भोजली पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

भोजली का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह पर्व गांवों में सामाजिक सामंजस्य और सद्भावना को बढ़ावा देता है। भोजली के माध्यम से नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं से जोड़ने का कार्य किया जाता है। साथ ही, यह पर्व पर्यावरण संरक्षण, जल संसाधनों के महत्व और कृषि के प्रति जागरूकता फैलाने का भी काम करता है।

भोजली और आधुनिक समाज

आज के आधुनिक समाज में भी भोजली पर्व का महत्व कायम है। हालांकि, बदलते समय के साथ इसकी पूजा और आयोजन के तरीकों में कुछ परिवर्तन हुए हैं, लेकिन इसकी मूल भावना आज भी जीवित है। भोजली का पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमें हमारी सांस्कृतिक पहचान की याद दिलाता है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है।

2024 में कब है भोजली

भोजली प्रति वर्ष रक्षाबन्धन के अगले दिन मनाया जाता है और 2024 में भोजली 20 अगस्त को है

निष्कर्ष

भोजली पर्व न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग है। यह पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझने और उनका सम्मान करने की शिक्षा देता है। भोजली के माध्यम से हम अपनी परंपराओं और आदर्शों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं, जिससे हमारी सांस्कृतिक पहचान सदा जीवित रहे।

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